Answer for योग का क्या उद्देश्य
योग का क्या उद्देश्य
हरेक अवस्था में और हरेक उम्र में हर मर्द और औरत योगासन का अभ्यास करते हैं। काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार आदि का नाश हो जाता है। बुढ़ापा दूर हो जाता है। शरीर सुन्दर और आकर्षक बन जाता है। अच्छी सेहत प्राप्त करने के लिए योगासन के अलावा अन्य कोई साधन नहीं। रोज़ाना योगासन करने से खून की संचालन व्यवस्था ठीक रहती है। शरीर चुस्त और दुरुस्त रहता है। आलस तो नज़दीक भी नहीं आता। अपना शरीर तंदुरुस्त, मुद्रा आकर्षक और उत्साहपूर्ण बनाए रखने के लिए किसी तरह की कोई तपस्या करने की आवश्यकता नहीं। इसलिए शरीर को तंदुरुस्त, आकर्षक, सुन्दर और स्वस्थ रखने के लिए योग सबसे बढ़िया ढंग है।
योग क्या होते है और उपयोगिता
योगासन अर्थात आसन का अर्थ है स्थिति। जिस सुविधाजनक स्थिति में बैठकर योग का अभ्यास आसानी से हो सके उसमें बैठकर अभ्यास करना ही अच्छा है। इसलिए योग के आचार्यों ने अनेक प्रकार के आसनों की कल्पना की जिनमें से अपने शरीर की स्थिति के अनुकूल प्रतीत होने वाले किसी भी आसन का प्रयोग किया जा सकता है। योग मार्ग के प्रवर्तक श्री आदिनाथ शिव ने सृष्टि की चौरासी लाख योनियों के आकार को आसन के उपयुक्त पाया और उतनी ही बड़ी संख्या में से अपने अनुकूल सिद्ध होने वाले आसन को छांट लेना कोई सरल कार्य नहीं था। बड़े-बड़े अनुभवी ऋषि-मुनी भी उन सभी आसनों के अभ्यास के लिए सफल नहीं हो सकते थे। इसलिए उन्होंने सब की पड़ताल करके चयन किया और उनमें से जितने आसन व्यवहार में आने के योग्य समझे, उतने चुन कर निश्चित कर दिये। इस प्रकार उस बड़ी संख्या में से काट-छांट होते-होते आसनों की कम संख्या व्यवहारिक सिद्ध हुई। चौरासी लाख से कम करके चौरासी हज़ार और फिर उससे भी कम करके चौरासी सौ रह गई। उसके बाद भी जो काट-छांट की गई तो आठ सौ चालीस आसनों की उपयोगिता मानमे योग्य रह गई।
उसके बाद जो आचार्य हुए उन्होंने अपने अनुभव के आधार पर चौरासी आसनों को ही उचित माना है। उनके मत के मानने वालों ने तो उस संख्या को भी अधिक उपयोगी न समझ कर केवल बत्तीस (32) आसनों को व्यवहारिक माना। उसके बाद आने वाले आचार्यों ने तो बत्तीस आसनों को भी फिजूल समझा और योग अभ्यास करने वालों की दशा उस समय के अनुसार शारीरिक स्थिति को देखते हुए योग आसनों की संख्या बहुत कम निर्धारित कर दी। “हठयोग प्रदीपिका’ में 14 प्रकार के, योग प्रदीप (संवत् 1825 के लेख) में 29 किस्मों के, घरिन्ड संहिता में 32 किस्मों के, विश्व कोष में 32 किस्मों के, अनुभव प्रकाश (संवत् 1825) में 50 किस्मों के आसनों का वर्णन मिलता है। इनके अलावा ‘आसन’ नाम की पुस्तक में 89 किस्मों के आसन और हैं जो आधुनिक समय . के अनुकूल हैं। इस प्रकार आसनों की पूर्ण संख्या 133 हुई। परन्तु योगी गोरख नाथ और योगी कोक ने योग और भोग के आसनों की पूरी संख्या 84 निश्चित की। पूर्व काल में भगवान सदाशिव ने 84 लाख आसन बताये थे जो कि संपूर्ण प्राणियों के स्वरूप थे, परन्तु काल-चक्करों के कारणों से अलोप हो कर 84 ही रह गए। फिर भी हम यहां अनेक आसनों का वर्णन करेंगे जोकि अभ्यास करने में सरल और अधिक उपयोगी सिद्ध हो सकें।
आसन ऐसा होना चाहिए जिसमें लगातार बैठने में किसी प्रकार की तकलीफ का अनुभव न हों बल्कि मन में प्रसन्नता बनी रहे और कम से कम एक पहर तक लगातार बैठे रहने में किसी प्रकार का ऊबाऊपन न महसूस हो। इस बात को सामने रखते हुए अपने लिए किसी उपयोगी आसन का चुनाव करना चाहिए।
योग आसनों के नियमबद्ध अभ्यास से योग साधकों को ही नहीं, गृहस्थियों और भोगी औरतों-मर्दो को भी सेहतमंद और सुन्दर रहने में ये सहायक सिद्ध होते हैं। इनके द्वारा शरीर की मासपेशियां मज़बूत होकर उनमें लचक आ जाती है। यह देखकर योग के आचार्यों ने आसन के अभ्यास से साधक का कामदेव के समान सुन्दर हो जाना बताया है। । परन्तु किसे भी आसन का अभ्यास करने से पहले शरीर को मल-रहित और साफ बना लेना चाहिए। ऐसा न करने से शरीर में आलस बने रहने से तत्परता नहीं होती जिससे साधना में मन ठीक प्रकार से नहीं लगता। रोज़ सुबह उठकर शौच आदि जा कर और स्नान करना भी साधक के लिए बहुत हितकारी है। इसके बाद आसन की स्थिति करनी चाहिए। योगासन से पहले कोपीन या लंगोट धारण करना अधिक उपयोगी है। जांघियां पहनने से भी काम चल सकता है। ज़रूरत हो तो बुनियान भी पहनी जा सकती है। सर्दियां हों तो शरीर की सुरक्षा के लिए कोई ढीला कपड़ा भी धारण किया जा सकता है। औरतों के लिए भी अंडरवियर (जांघिया) या पजामा पहनना ठीक है। शरीर पर चोली, ब्लाऊज़ या छोटी कमीज़ धारण कर सकती हैं, परन्तु यह ध्यान रहे कि योग आसन करने वाली औरत हो या मर्द हो, दोनों को ही कम कपड़े पहनने चाहिएं।
आसन का अभ्यास करने की जगह भी साफ, सुन्दर, समतल, अनोखी, धूल-मिट्टी से रहित होनी चाहिए और जहां शुद्ध हवा का आसान आवागमन हो तथा नज़दीक पानी की सुविधा भी हो। बैठने से पहले कोई मोटा कपड़ा या कंबल या दरी बिछाकर जगह समतल कर लें। ऐसी सुविधा होने पर अभ्यास में भी ज़्यादा आसानी रहती है।
किसी रोग में जब शरीर पर काबू न हो, तब कोई भी आसन न करो। जितनी सुबह हो सके, आसन कर लेने चाहिएं। पेट को साफ़ रखने वाले आसनों से आसन शुरू करने चाहिएं। सुविधाजनक आसन पहले करें। जो आसन हल्के और आसान मालूम हो, उनको करो। सारे आसन करने के बाद ‘शव-आसन’ करना चाहिए। यह आराम का आसन है, जिसमें शरीर को ढीला छोड़ दिया जाता है। 20 या इससे कम उम्र वाले लड़के-लड़कियों को नाभि-आसन से प्रारंभ करना अच्छा होता है। इससे खून की वृद्धि में सहायता मिलती है। उत्तम सेहत के ‘लिए योग आसनों से बढ़कर दूसरा कोई विकल्प नहीं है।