Answer for रीढ़ की हड्डी के लिए कौन सा आसन करना चाहिए
रीढ़ की हड्डी के लिए कौन सा आसन करना चाहिए
जिस व्यक्ति को कमर दर्द, सरवाइकल, स्पोंडेलाइटिस स्लिपडिस्क, शियाटिका और रीढ़ की हड्डी से संबंधित सारे रोगों को दूर करने के लिए ये आसन विशेष उपयोगी हैं। यदि किसी को सांस का रोग है तो उसके लिए ये आसन बहुत लाभदायक हैं, क्योंकि ये सारे आसन करते समय सांस फेफड़ों में भरा जाता है जिससे फेफड़े सिकुड़ते-फूलते रहते हैं। यहां प्राणों का संचार होता है। आसन करने से फेफड़ों की सुस्त नाड़ियां फिर चुस्त हो जाती हैं। पेट की ग्रंथियां भी इन आसनों से ठीक होती हैं। गुर्दे के रोग दूर होते हैं। रीढ़ की हड्डी के आसन निम्नलिखित हैं :
1.चक्रासन
विधि-
1. पीठ के बल लेटकर घुटनों को मोड़ें, एड़ियां नितंबों के पास ले जाओ।
2. दोनों हाथ उल्टे करके कंधों की सेध में थोड़ा पीछे करके रखो ताकि संतुलन बना रहे।
3. सांस अन्दर खींचकर पेट और छाती ऊपर को उठाओ।
4. धीरे-धीरे हाथ व पैर पास लाने की कोशिश करो जिससे शरीर चक्र जैसा हो जाये।
5. आसन छोड़ते हुए शरीर को ढीला छोड़कर ज़मीन पर टिका दें। यह तीन-चार बार करो।
लाभ-
1. शरीर में फुर्ती, ताकत और तेज बढ़ता है।
2. हाथों पैरों की मांसपेशियों को शक्ति देता है।
3. औरतों की बच्चेदानी की बीमारियों को दूर करता है।
4. पेट दर्द, सांस रोग, सिर दर्द में विशेष लाभकारी है।
5. भूख व आंतों को कार्यशील करता है।
2. सेतुबंध आसन
विधि-
1. सीधे लेट जाओ।
2. दोनों घुटने मोड़कर शरीर के बीच के हिस्से को ऊपर उठाओ। दोनों हाथ कोहनियों के बल खड़े करके कमर नीचे लगा लो।
3. शरीर के बीच के हिस्से को ऊपर रोक कर पैरों को सीधा करो। कंधे और सिर धरती के ऊपर टिका रहे। इस स्थिति में 6-8 सैकिण्ड के लिए रहो।
4. मुड़ते हुए नितंब और पैरों को धीरे-धीरे ज़मीन पर रखो। हाथ एकदम कमर के नीचे से न हटाओ। 5. कुछ देर आराम करके फिर 4-6 बार अभ्यास करो। लाभ-स्लिपडिस्क, कमर और गर्दन का दर्द तथा पेट के रोगों में विशेष लाभ देता है। ये लाभ इस आसन करने से ही प्राप्त होते हैं।
3. कटिउत्तानासन
विधि-
1. शव आसन में लेट कर दोनों पैरों को मोड़कर और दोनों हाथ पीछे को फैलाकर रखो।
2. सांस अन्दर भरते हुए पीठ को ऊपर को खींचो। नितंब और कन्धे धरती पर लगे रहें। फिर सांस छोड़ते हुए पीठ को धरती पर दबाकर सीधी कर दें।
3. यह अभ्यास 8-10 बार करो।
कटिउत्तानासन लाभ-स्लिप डिस्क, शियाटिका और कमर दर्द में विशेष लाभदायक है।
4. भुजंगासन
विधि-
1. पेट के बल लेट जाओ। हाथ की हथेलियां ज़मीन पर रखकर बाजुओं को शरीर के दोनों तरफ रखो। कोहनियों को ऊपर ऊंची और बाजू छाती से लगी हों।
2. पैर सीधे और पंजे आपस में मिले हुए हों। पंजें. पीछे को तने हुए धरती पर लगे हों।
3. सांस अन्दर खींचकर छाती व सिर को धीरे-धीरे ऊपर उठाओ। नाभि से निचला भाग ज़मीन पर टिका रहे। सिर को ऊपर उठाते हुए गर्दन जितनी हो सके, पीछे मोड़े। इस स्थिति में 30 सैकिण्ड रहो। .
4. जितनी बार हो सके दोहराओ। अभ्यास होने पर पूर्ण भुजंग के रूप में भी किया जा सकता है।
लाभ-
सरवाईकल, स्पोंडेलाइटिस और स्लिप डिस्क आदि सभी रीढ़ की हड्डी के रोगों के लिए अति महत्त्वपूर्ण आसन हैं।
5. नाभि आसन
विधि-
1. पेट के बल लेटकर दोनों हाथ मिलाकर सामने फैलाओ। पैर पीछे इकट्ठे और सीधे रहें। पंजे पीछे को तने हुए हों। नाभि आसन
2. सांस अन्दर भरकर शरीर को दोनों ओर से ऊपर उठाओ। पैर, छाती, सिर और हाथ ज़मीन से उठे हुए हों। इस प्रकार 4-5 बार करो।
लाभ-
1. रीढ़ की हड्डी के सारे रोगों को लिए लाभदायक है।
2. नाभि के हिस्से को शक्ति देता है।
3. गैस निकालता है।
4. योन रोग व कमज़ोरी दूर करता है।
5. पेट और कमर का मोटापा कम करता है।