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वज्र आसन कैसे करे
इस आसन का नाम वज्र आसन ही क्यों रखा गया है ? इसके बारे में कहना बहुत मुश्किल है। इस बारे अनेक योगियों के विभिन्न विचार हैं। इससे पेडू स्वाधिष्ठान चक्कर और मूलाधार चक्कर की नाड़ियां और मासपेशियों पर तनाव आता है और उनका शिथलीकरण भी होता है। शरीर भी हृष्ट-पुष्ट और मज़बूत हो जाता है। वज्र आसन साथ ही ध्यान भी दृढ़ लगता है और शरीर ज़मीन पर स्थिर रूप से बैठ जाता है। इन सभी कारणों पर विचार करके इसका नाम वज्र आसन रखा गया है। वज्र आसन में बैठकर ध्यान भी किया जा सकता है। इसलिए यह आसन कसरत की बजाय ध्यानात्मक अधिक है। इससे घुटनों की हड्डियां पूरी मुड़ती हैं। इसलिए जिनके घुटनों में कोई तकलीफ हो या मोड़ने पर दर्द होता हो, उनके लिए उचित है। इस आसन की पूर्ण स्थिति के लिए शीघ्रता न करें और घुटने मोड़ने का अभ्यास धीरे-धीरे बढ़ाकर इस आसन की पूर्ण स्थिति को प्राप्त करें। आसन के अभ्यास में दोनों टांगों को सामने की ओर सीधी लम्बी करें।
अब बायीं टांग को पकड़ कर घुटने को मोड़ लें और पैर की एड़ी को बायीं जांघ के मोड़ पर स्पर्श करने दें। अब बायें हाथ से बायें पंजे को पकड़ कर और दायें हाथ का सहारा देकर बायें नितंब को ज़मीन से थोड़ा ऊंचा कर लें और ज़मीन तथा (नितंब के बीच) बायें पैर के तलवे को इस प्रकार रखें कि पंजे की ओर का हिस्सा ज़मीन को स्पर्श करे और तलवा नितंब को स्पर्श करे और एड़ी बायीं तरफ बाहर को निकली हो। बायीं तरफ नितंब को बायें तलवे पर जमा दें। इसी प्रकार दायीं टांग को भी घुटनों से मोड़ो और पैर के तलवे के ऊपर दायें नितंब को बिठा दें।
एड़ी दायीं ओर लगी रहेगी। दोनों नितंब दोनों तलवों पर होने और गुदा ज़मीन को स्पर्श करे। अब दोनों हाथों को दोनों घुटनों पर रखकर, तन कर बैठो (चित्र 11.23) इस आसन की यह पूर्ण स्थिति है। इस आसन की एक दूसरी विधि भी है। दोनों पांव के घुटने मोड़कर पीछे को ले आओ और एड़ी व नितंब को स्थिर करो और दोनों पावों के पंजों को इस तरह फैलाओ कि दोनों तलवे बाहर ऊपर की ओर दिखाई दें। इस प्रकार दूसरी विधि में पंजों और घुटनों पर ज़्यादा ज़ोर पड़ता है। इसलिए नये अभ्यास करने वालों को अभ्यास में धीरेधीरे वृद्धि करके ही अभ्यास की पूर्णता पर पहुंचना चाहिए।
इस आसन से घुटनों पर ज़ोर पड़ता है। यदि घुटनों में धातु विकार हों तो वह नष्ट हो जाता है। पिंडली, पंजे और नितंब आदि की नाड़ियों पर ज़ोर पड़ता है। इस कारण इन नसों-नाड़ियों के विकार नष्ट होते हैं और उनमें शक्ति आती है। नाभि और उसकी निचली जगहों की मांसपेशियों पर ज़ोर पड़ता है और ये पेशियां पाचन संस्थान से संबंधित होती हैं। इसलिए पाचन शक्ति बढ़ती है। मंदाग्नि दूर होती है और खाए हुए अनाज का रस उत्तम और उचित ढंग में प्राप्त होता है। ___ घरिंड साहित्यकार के कथन अनुसार-दोनों जांघों को वज्र की तरह स्थिर करो और दोनों पांवों को गुदा के नज़दीक नितंबों में लगाओ। सामने की ओर दोनों घुटने मिले रहने चाहिएं। हाथ घुटनों पर रहने चाहिएं और यह स्थिति नमाज़ अदा करने वालों जैसी हो जाती है।
इस आसन को भोजन के तुरन्त बाद भी किया जा सकता है। इससे पाचन शक्ति बढ़ती है और अजीर्ण भी दूर होता है। घुटनों का दर्द हमेशा के लिए दूर हो जाता है, साथ ही आंखों की रौशनी भी बढ़ जाती है। वीर्य धारा नाड़ी मज़बूत बनती है। पेट की वायु का नाश करती है। पाचन शक्ति तेज़ होती है। कब्ज दूर होकर पेट की सभी बीमारियां दूर हो जाती हैं। पीलिया रोग ठीक हो जाता है। रीढ़, कमर, जांघ, घुटनों और पैरों की शक्ति बढ़ती है। कमर और पैरों का वात रोग दूर होता है। औरतों के अनियमित मासिक धर्म आदि रोगों में भी यह आसन लाभ करता है। पुरुषों-स्त्रियों के लिए यह एक सर्वश्रेष्ठ आसन है।

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