उपभोक्ताओं की क्या समस्याएं है
1. आज के मैचिंग के जमाने में हर व्यक्ति एक दूसरे से आगे बढ़ने के चक्कर में अच्छे से अच्छा करने, खरीदने के चक्कर में बहुत कुछ करना चाहता है किन्तु कुछ समस्याएं उन्हें परेशानी में डाल देती हैं, जैसे कि वस्तुओं के विज्ञापनों की भरमार देखकर आम आदमी परेशान होता है कि क्या खरीदें क्या नहीं। क्योंकि एक ही तरह की कई वस्तुएं दिखती हैं तो यह निश्चित करना कठिन है कि क्या अच्छा है और क्या बुरा है?
2. दूसरे जो कम पढ़े लिखे हैं या बिल्कुल भी पढ़े लिखे नहीं हैं वे भी सही गलत का अन्तर करने में अपने को अयोग्य ही पाते हैं। जैसा जो गाइड कर देता है वैसा वे खरीदारी करके पछताते हैं।
3. कई बार तो आर्थिक समस्या आड़े आ जाती है और एक दम अतिआवश्यक वस्तु ही खरीद पाते हैं बाकी मन होने पर भी नहीं खरीद पाते। वे यह भी ठीक से नहीं समझ पाते कि जो वस्तु हमने ली है उचित भी है या नहीं।
4. कई बार बहुत अच्छी वस्तु चाहने पर भी नहीं खरीद पाते हैं क्योंकि स्थानीय वस्तु को ही दुकानदार बढ़ा चढ़ा कर बताते हैं जो कि वास्तव में उचित नहीं होता है। यह कारण भी वस्तु की पहचान का न होना है। यदि हर एक वस्त्र पर पहचान के लिए एक लेबल लगाने का सरकार द्वारा निर्देश हो तो हर आदमी धोखा न खाने पाए। उपलिखित समस्याओं से निपटने का साधन तो है – यदि कपड़ा उद्योग के लिए कुछ निर्देश निश्चित कर दिए जाए, जैसे
1. पूर्ण जानकारी : आम जनता की जानकारी के लिए कपड़े की गुणवत्ता, उसकी रचना, संगठन तथा मूल्य के विषय में जानकारी के लिए एक स्लिप कपड़ों पर लगनी चाहिए। खासतौर पर महिलाओं को इसकी पूरी जानकारी का तरीका पता होना चाहिए। उसको समझ कर पढ़ें और तब उचित वस्तु खरीदें।
2. प्रमाणिकता पर बल : एक स्लिप पर वस्त्रों की गुणवत्ता अंकित होनी चाहिए। ये नहीं हो कि कम्पनी अपनी मर्जी से यह मानकता छाप दें। बल्कि कुछ मानक संस्थाएं ऐसी हों जो कि गुणवत्ता के मानक स्थापित करें और प्रमाणपत्र जारी करें।
3. विज्ञापनों में नैतिकता : यह नहीं होना चाहिए कि एक ही वस्तु के दस विज्ञापन बना दिए जाएं। नैतिकता के आधार पर भ्रामक विज्ञापनों पर प्रतिबन्ध लगाना चाहिए और यदि फिर भी वस्त्र खराब निकलें तो मिलों में वापिस जाने चाहिएं। अच्छाइयों को तकनीकी दृष्टिकोण से प्रस्तुत कराना चाहिए।
4. सूचनात्मक लेबल की अनिवार्यता : उपभोक्ताओं की समस्याओं को सुलझाने के लिए वस्त्र सम्बन्धी सभी सूचनाएं लेबल पर अंकित होनी चाहिए। सूचना स्पष्ट हो, सामान्य भाषा में हो, जन साधारण की समझ में आने वाली हो।
5. उपभोक्ता संघों का संगठन : उपभोक्ताओं के हितों की रक्षा तथा समस्याओं को दूर करने हेतु वस्त्र उपभोक्ता संगठन होने चाहिएं जो लोगों को मुफ्त न्याय दिला सकें तथा समुचित निर्देश द्वारा उनकी वस्त्र सम्बन्धी आवश्यकता की पूर्ति में सहयोग दे सकें। इसके लिए उन्हें सभी वस्त्र विक्रेताओं को अपने रेडीमेड वस्त्र पर 5 बातों की जानकारी कराने के लिए एक कानून बना लेना चाहिए ताकि उनके वस्त्रों में एक विश्वसनीयता आए और उपभोक्ता उसी लेबल को देख कर वस्त्र खरीदें, जैसे गोल्ड का मानक मूल्य की Stamp गोल्ड की शुद्धता अर्थात purity को दर्शाती है। वैसे ही ये लेबल वस्त्र की शुद्धता अर्थात कम्पनी की विश्वसनीयता को दर्शाएंगी तो एक अनपढ़ भी ऐसा लेबल लगा हुआ वस्त्र देख कर खरीदने में नहीं हिचकिचाएगा।
ये पांच बातें जो लेबल के लिए बनें वे निम्न हैं –
1. व्यापारिक चिह्न
2. संरचना का प्रतिशत (Percentage of composition)
3. परिसज्जा, जैसे रंग का पक्कापन, कीड़ों आदि से सुरक्षा, चमक लाने की विधि, मांड की स्थिरता तथा मात्रा, क्रीज क्षमता आदि।
4. देख रेख का निर्देशन (Direction for care)
5. निर्माता व उसका पता (Manufacturer’s name with address) फैशन का अपूर्व जमाना है।
दिन दुने अच्छे से अच्छे वस्त्र बन रहे हैं और मार्किट में आ रहे हैं। उनमें कपड़ा महंगा हो या सस्ता, यह कम देखते हैं, उसकी पूर्णतः फिनिशिंग अर्थात् सिलाई, प्रैसिंग, डिज़ाइनिंग इत्यादि सभी कुछ कैसा है, या किस ब्रान्ड का है, यह आज का मनुष्य या ग्राहक देखता है और खोज करता है।