Answer for कैथोड रे टूयूब (CRT) मॉनीटर क्या होता है

कम्प्यूटर के शुरुआती दिनों में CRT तकनीक पर आधारित मॉनीटर ही प्रयोग किए जाते थे। कांच की पिक्चर टूयूब से बने ये मॉनीटर भारी भरकम होते थे और बहुत ज्यादा मात्रा में बिजली का प्रयोग करते थे। निम्न चित्र में आप सीआरटी मॉनीटर और उसकी डिस्प्ले तकनीक को देख सकते हैं इसमें वास्तव में एक कांच की वैक्यूम ट्यूब को लगाया जाता है और इस पर इलेक्ट्रॉन गन असेम्बली के द्वारा इलेक्ट्रॉन बीम्स को छोड़ते हैं। इस ट्यूब की जिस सतह से यह बीम टकराती हैं उस पर फास्फोरस का लेप होता है। गन से निकली हुई किरणें तीन रंगों की होती हैं- यह रंग हैं RGBI यहां पर R का अर्थ है रेड,G का अर्थ है ग्रीन और B का अर्थ है ब्लू। मॉनीटर पर हमें जितने भी रंग दिखाई देते हैं वह सभी लाल, हरे और नीले रंगों का संयोजन या मिश्रण होते हैं।

CRT तकनीक में समय के साथ सुधार किया गया और पहले जहां कर्व पिक्चर ट्यूब प्रयोग की जा रही थीं वहीं अब फ्लैट पिक्चर ट्यूबों का प्रयोग होने लगा है। इनमें दृश्य कर्व की अपेक्षा ज्यादा स्पष्ट होता है।

कम्प्यूटर के शुरुआती दौर में डिस्प्ले के लिए एनालॉग सिगनल प्रयोग किया जाता था। लेकिन अब तकनीक में परिवर्तन होने से डिजिटल सिगनल को प्रयोग किया जाता है। इस तकनीक को डीवीआई इंटरफेस भी कहते हैं।

कम्प्यूटर के शुरुआती दौर में डिप्ले के लिए एनालॉग सिगनल प्रयोग किया जाता था। लेकिन अब तकनीक में परिवर्तन होने से डिजिटल सिगनल को प्रयोग किया जाता है। इस तकनीक को डीवीआई इंटरफेस भी कहते है

CRT तकनीक से बने मॉनीटरों के संदर्भ में डॉट पिच नामक शब्द का प्रयोग किया जाता है। इससे मॉनीटर की डिस्प्ले क्वालिटी प्रभावित होती है। आइये इसे समझते हैं। हैं।

⇨ सीआरटी मॉनीटर के अग्र भाग में एक विशेष प्लेट होती है जिस पर शैडो मास्क का निर्माण होता है। इस प्लेट के बाद फॉस्फोरस नामक रसायन की परत होती है।

⇨ इस परत में कई हजार छिद्र होते हैं। इन्ही छिद्रों से इलेक्ट्रॉन गन की प्रत्येक किरण का फोकस ठीक होता है। डॉट पिच तकनीक इलेक्ट्रॉन गन के द्वारा फेंकी जा रही गलत डॉट्स को प्रदर्शित होने से रोक देती है।

⇨ दो डॉट पिचों के बीच की दूरी मिलीमीटर में होती है। इसकी वजह से इनके बीच का स्थान एक समान रहता है और यह अच्छी गुणवत्ता का डिस्प्ले उत्पन्न करता है। आइए इसे और स्पष्ट रूप से समझते हैं। –

⇨ आईबीएम नामक कंपनी ने जब पहला कलर मॉनीटर बनाया था तो उसमें डॉट पिचों के बीच की दूरी .43 मिलीमीटर थी। जिसे बहुत ही घटिया दर्जे का कहा जाता है।

⇨ वास्तव में डॉट पिच का मान जितना कम होगा इमेज हमें उतनी ही अच्छी दिखाई देगी। आजकल .25 मिलीमीटर की डॉट पिच का प्रयोग किया जाता है। ⇨ इसके अलावा मॉनीटरों में ब्राइटनेस और कंट्रास्ट को निर्धारित करने के लिए स्विच उपलब्ध होते हैं जिनसे हम इमेज को काफी हद तक सही कर सकते हैं।

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