Answer for ट्रिमिंग कितने प्रकार के होते है

1. पाइपिंग : उरेब कपड़े की पट्टी को पाईपिंग कहते हैं यह स्वयं बनाई जा सकती है और बाज़ार से भी बनी-बनाई हर रंग में मिलती है। किन्तु स्वनिर्मित पाईपिंग अच्छी रहती है। जिस वस्त्र में लगानी हो उसी के बचे हुए कपड़े में से उरेब पट्टियां काट ली जाती हैं। उनको तिरछे ही जोड़ा जाता है और चाहे डिज़ाइन के रूप में, चाहे गले, कन्धे पर लगाया जा सकता है। बाज़ार की बनी हुई पाईपिंग हल्के कपड़े की होती है। वह मूल वस्त्र से पहले ही फट जाती है। अतः स्वनिर्मित पाईपिंग का ही सदा प्रयोग करना चाहिए। .

2. लेस : यह सूती, रेशमी, नाइलॉन की अनेकों रंगों में तथा डिज़ाइनों में बनी होती है। यह 2 प्वाइंट से लेकर 18″ चौड़ी तक होती है। घटिया व बढ़िया हर प्रकार की मिलती है। बच्चों के वस्त्रों में अधिकतर पतली लेस व बड़ों के वस्त्रों में डिज़ाइन व नाप के आधार पर लेस का प्रयोग करना चाहिए। 18″ चौड़ी लेस का प्रयोग अधिकतर डिज़ाइन बनाने में किया जाता है। जैसे कि फ्राकों में, जैकेट आदि में अगला भाग तो लेस का तथा पिछला मूल कपड़े का बनाया जाता है। कपड़े की मजबूती के आधार पर ही लेस का चयन करना चाहिए

3. रिब्बन : यह रिब्बन 2 प्वाइंट से लेकर 6″ तक चौड़े होते हैं। साटन, टाफटा तथा नाइलॉन के बाज़ार में आते हैं। कपड़े के रंग का रिब्बन डिज़ाइन के अनुसार पतला या चौड़ा लेकर फूल के आकार में या झालर के आकार में फिट करते हैं। इसका अकेले का भी प्रयोग किया जाता है तथा मैचिंगकी लेस के साथ भी। कुशन, टेबल क्लॉथ आदि में खूबसूरती बढ़ाने के लिए सिलाईयों में भी इसका प्रयोग करते हैं। बच्चों के वस्त्रों में तो डोरी के स्थान पर इसका प्रयोग किया जाता है।

4. फीते (Tussels) : ये फीते रेशमी, सूती, ऊनी, नाइलॉन आदि सभी रेशों से बनाए जाते हैं। प्राचीन काल से लेकर आज तक सुनहरी, सफेद, चमकीले फीते भी बनते हैं और उनका वस्त्रों पर तथा साड़ियों तक पर प्रयोग होता है। आजकल तो रेशम के काम के साथ भी सफेद या सुनहरा तार मिला कर फीता बनाए जाते हैं। विपरीत रंग की कढ़ाई वाले फीतों का भी प्रयोग काफी मात्रा में करते हैं, जैसे – काली साड़ी या दुपट्टे पर सिल्वर रंग के फीते लगाना या सन्तरी रंग के सूट पर हरे रंग का फीतों का आजकल बहुत फैशन प्रचलित है।

5. डोरी : बाजार में बनी बनाई डोरियां, रेशमी, सूती व हर रंग में मिलती हैं। सूती गोल डोरी अधिकतर सोफा कवर, सोफा सैट आदि में ही लगती है। उसी पर चमड़ा चढ़ा कर पर्स में भी प्रयोग करते हैं, किन्तु आजकल तो वस्त्रों में डिजाइन डालने के लिए भी प्रयोग होने लगा है। विशेषतौर पर फ्रॉकों में, नाईट सूटों में, लेडीज़ सूटों में कमर पर बांधने के लिए एकरंगी या कई रंग की डोरियों का प्रचलन है।

6. मोटिफ : यह बने-बनाए तथा स्वनिर्मित दोनों ही तरह के होते हैं। जो आकृति पसन्द हो उसको कपड़े पर बनाकर धागे द्वारा चेन स्टिच बनाकर, उसके ऊपर बटन होल स्टिच से फिनिशिंग देकर बाह्य किनारों को छोटी कैंची द्वारा काट देते हैं। फिर उस तैयार आकृति को चाम्पे के टांके से अथवा तुरपाई से. जहाँ पर चाहे लगा सकते हैं। बच्चों के वस्त्रों पर यह आकृतियां बहुत लगाई जाती हैं। आजकल तो बड़े भी अपनी जीन्स में लगवाते हैं। जेब पर, हिप पर अथवा घुटनों पर, ताकि पैंट वहाँ से हल्की न होने पाए।

7. फूल : फूल भी बाज़ार में छोटे-बड़े कई आकार में आते हैं।लेडीज़ कमीज के अग्रभाग पर, साड़ियों पर तथा उनके मैचिंग ब्लाउज पर, फ्राकों के घेर आदि पर कपड़े की किस्म के मुताबिक फूल पसन्द करके लगाना चाहिए।

8. फैन्सी बटन : सीप, प्लास्टिक, नाईलॉन, कांच, एल्युमीनियम,चन्दन व किसी भी धातु के बने हुए बटन मिलते हैं। ओपनिंग को बन्द करने के उद्देश्य से तथा सजावट के लिए ऐसे ही कहीं पर लगाए जाते हैं। छोटे या बड़े वस्त्र के आकार प्रकार के अनुसार रंग मिलाकर या विपरीत रंग के बटन ही खरीदने चाहिए। कुछ बटन मढ़े हुए भी होते हैं। हाथ से मढ़ सकते हैं और बटन मढ़ने की मशीनें भी आती हैं। उनके द्वारा मढ़ कर लगा दिए जाते हैं।

9. रेशमी धागा : कढ़ाई के लिए कई रंगों के धागे एंकर या मोदी की गुच्छियों के रूप में बाज़ार में मिलते हैं। इन धागों से कढ़ाई भी की जाती है तथा हनीकोम्ब व स्मोकिंग भी इनसे कर सकते

10. क्विलटिंग : मूल कपड़ा तथा अस्तर के बीच में फोम या रुई की एक हल्की सी तह देकर उसके ऊपर डिज़ाइनदार सिलाईयां लगाने को क्विलटिंग करना कहते हैं। यह कार्य मशीन से भी करते हैं तथा हाथ से भी होता है। यह स्त्रियों की नाईटी, गाऊन, बच्चों के वस्त्र सजाने के उद्देश्य से किया जाता है।

11. शीशावर्क : गोल, चौकोर, छोटे-बड़े साइज़ के शीशे बाजार में साबुत भी तथा कटे कटाए भी मिलते हैं। उनको बटन होल के द्वारा जहाँ चाहे लगा सकते हैं। कपड़ों पर लगे हुए कुछ ज्यादा सुन्दर ही प्रतीत होते हैं। मूल कपड़े के रंग का धागा (सूती हो या रेशमी) किसी से भी टांक सकते हैं। इसके अतिरिक्त टक्स, प्लीट्स, गैदर्स, सलमा, तिल्ला आदि वस्तुओं से भी वस्त्र सजाए जाते हैं। किन्तु यह सब पहनने वाले की उम्र, अवसर व मौसम सभी को ध्यान में रख कर ही सजावट की जाती है। वस्त्र की सजावट ऐसी न करें कि थोपी हुई लगे वरन् ऐसी सजावट हो जो कि देखने वाले को आकर्षित करें। इसके साथ ही ग्राहक की इच्छा भी सर्वोपरि होती है। उसका भी ध्यान रखें।

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