Answer for ट्रैक्टर के कितने गियर होते है ?

पहला गियर (First Gear) पहले गियर को डालने के लिए ले-शाफ्ट के सबसे छोटे गियर से मेन शाफ्ट के सबसे बड़े गियर के गियर लीवर सलेक्टर शाफ्ट तथा फॉर्क की सहायता से खिसकाकर मिलाया जाता है। अग्र चित्र में शक्ति स्थानान्तरण (transmission) को तीर (arrow) के . निशान से दर्शाया गया है। इस पहले गियर में शक्ति सबसे अधिक प्राप्त होती है. परन्त चाल सबसे कम प्राप्त होती है, क्योकि ले-शाफ्ट का सबसे छोटा गियर मेन शाफ्ट के सबसे बड़े गियर को चलाता है।

दूसरा गियर (Second Gear) प्राय: यह गियर ट्रैक्टर की गतिशील अवस्था में डाला जाता है। इस गियर में ले-शाफ्ट के बीच गियर से मेन शाफ्ट का बड़े से छोटा गियर खिसकाकर मिलाया जाता है। इस गियर में पहले गियर की अपेक्षा शक्ति तो कम ही प्राप्त होती है, परन्तु ट्रैक्टर की चाल कुछ बढ़ जाती है।

तीसरा गियर (Third Gear) भीड़ वाले स्थानों में अथवा ऊँची-नीची जगहों या रेत अथवा दलदल वाली जगहों पर इस गियर का ही सबसे अधिक उपयोग होता है। इस गियर में ले-शाफ्ट के सबसे बड़े गियर से मेन शाफ्ट के सबसे छोटे गियर को खिसकाकर मिलाया जाता है। इस गियर में शक्ति तो और भी कम प्राप्त होती है, परन्तु इंजन पर लोड कम पड़ता है तथा पहले की अपेक्षा चाल और बढ़ जाती है।

चौथा या टॉप गियर (Fourth or Top Gear) ट्रैक्टर की अधिकतम चाल इसी गियर में प्राप्त की जा सकती है, क्योंकि ट्रैक्टर इससे पूर्व ही सब अवरोधों (गुरुत्वाकर्षण, भार तथा चढ़ाई) को पार करके अपनी सामान्य चाल पर चलने लगता है। इस गियर को डालने के लिए मेन शाफ्ट का सम्बन्ध बिना किसी गियर के माध्यम से सीधे ही प्राइमरी शाफ्ट से कर दिया जाता है। ट्रैक्टर को सामान्यत: अधिकतर इसी गियर में चलाया जाता है जब तक कि किसी कारणवश उसकी चाल कम न हो जाए। इस समय पिछले पहियों को सबसे कम शक्ति प्राप्त होती है, परन्तु उनकी चाल अधिकतम बढ़ाई जा सकती है, क्योंकि इस समय मेन शाफ्ट इंजन की चाल (RPM, के बराबर घूमने लगती है।

न्यूट्रल गियर (Neutral Gear) इंजन की चलती हुई दशा में यदि ट्रैक्टर को खड़ा रखना है, तो गियरबॉक्स को न्यूट्रल करना होता है। यदि टाप गियर की अवस्था से मेन शाफ्ट का सम्बन्ध प्राइमरी शाफ्ट से हटा दिया जाए, तो गियरबॉक्स न्यूट्रल हो जाएगा अर्थात् इंजन की शक्ति ले-शाफ्ट तक ही सीमित रहेगी। दूसरे शब्दों में कह सकते हैं कि जब मेन शाफ्ट का कोई भी गियर ले-शाफ्ट गियरों से न मिला हो तथा मेन शाफ्ट प्राइमरी शाफ्ट से भी अलग हो, उस समय गियर न्यूट्रल रहता है। इस समय पिछले पहियों अथवा मेन शाफ्ट को शक्ति प्राप्त नहीं होती है।

रिवर्स गियर (Reverse Gear) ट्रैक्टर को आवश्यकता पड़ने पर पीछे की ओर (reverse) भी चलाना पड़ता है। इसके लिए रिवर्स गियर डाला जाता है। इस गियर में लगभग पहले गियर के बराबर शक्ति तथा चाल प्राप्त होती है। इस गियर को डालने के लिए मेन शाफ्ट के सबसे बड़े गियर को खिसकाकर रिवर्स शाफ्ट के आइडलर गियर से मिला दिया जाता है। रिवर्स शाफ्ट का आइडलर गियर सदा ले-शाफ्ट के छोटे गियर से मिला रहता है तथा उससे विपरीत दिशा में घूमता रहता है, क्योंकि प्राइमरी शाफ्ट द्वारा ले-शाफ्ट उससे विपरीत दिशा में अर्थात् घड़ी की सुई की चाल के विपरीत (anti-clockwise) दिशा में घूमती है, इसलिए रिवर्स शाफ्ट का आइडलर गियर ले-शाफ्ट से विपरीत अर्थात् घड़ी की सुई की दिशा (clockwise) में घूमता है। इस प्रकार जब मेन शाफ्ट के बड़े गियर को रिवर्स शाफ्ट के गियर से मिलाते हैं, तो मेन शाफ्ट का गियर विपरीत दिशा में अर्थात् घड़ी की सुई की चाल के विपरीत घूमने लगता है तथा मेन शाफ्ट को उल्टा घुमाकर ट्रैक्टर को पीछे रिवर्स में चलाता है। सामान्य गियरों की दिशा में मेन शाफ्ट सीधी अर्थात् घड़ी की सुई की चाल क्लॉकवाइज (clockwise) घूमती है। . स्लाइडिंग मैश गियरबॉक्स बहुत सरल तथा सस्ता होता है, परन्तु इसमें कुछ हानियाँ भी हैं, जैसे- गियर बदलना इसमें कठिन होता है, क्योंकि इस समय मेन शाफ्ट तथा ले-शाफ्ट के गियरों की चाल लगभग बराबर करना आवश्यक होता है, जोकि इस प्रकार के साधारण गियरबॉक्स में एक अच्छा ड्राइवर ही कर सकता है, अन्यथा गियर मिलाते समय आवाज बहुत होती है, क्योंकि इसमें स्पर (spur) गियर का ही प्रयोग किया जाता है। इससे गियरों के दाँते भी शीघ्र ट्टते हैं। किसी भी गियरबॉक्स में बिना आवाज गियर बदलने के लिए दोनों गियरों की चाल समान होना आवश्यक है। स्लाइडिंग मैश गियरबॉक्स में इसके लिए विशेष व्यवस्था नहीं रहती है। अत: इस प्रकार के गियरबॉक्स में गियर बदलते समय डबल डी-क्लचिंग की आवश्यकता होती है। इसके लिए गियर बदलते समय पहली बार क्लच डिसएंगेज (disengage) करते हैं तथा गियरबॉक्स न्यूट्रल करते हैं। दूसरी बार पुन: क्लच पैडल दाबकर गियर बदलता है।

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