Answer for पटोला वस्त्र को कहा बनाया जाता है और कैसे ?

काठियावाड़ तथा गुजरात में बनाए जाने वाले ये वस्त्र महिलाओं में सौभाग्य सूचक माने जाते हैं। तरह-तरह के डिज़ाइनों तथा रंगों से युक्त यह साड़ियां अद्वितीय होती हैं। इनके बार्डर खूबसूरत जरी के काम के होते हैं। ये सस्ती साड़ी भी 2000 ₹ से शुरू होकर बहुत ऊंचे दामों तक बिकती हैं। ये प्रायः सिल्क की भिन्न-भिन्न क्वालिटी की बनती हैं। इनके डिज़ाइन प्राय: बुनाई में ही बनते हैं। डिज़ाइन बुनाई के सिल्क धागे पहले ही रंग लिए जाते हैं। कपड़े में बनाए जाने वाले डिज़ाइनों को अलग से बना कर रखा जाता है और फिर उसी के अनुसार वीविंग में वह डिज़ाइन आते हैं। सिल्क के धागे पहले हल्के रंग में, फिर उससे गहरे रंग में और फिर सबसे गाड़े रंग में, कई-कई बार बांध कर रंगते हैं और उसके उपरान्त पूर्व योजना के अनुसार उन धागों का प्रयोग किया जाता है। इस प्रकार प्लेन व रंगे धागों को परस्पर बुनने के लिए बहुत सावधानी का प्रयोग करना होता है। इसमें टैम्पल (Temple design), चिड़ियां, मोर, हाथी, टोकरी आदि डिजाइन प्रायः प्रयोग करते हैं। ये वस्त्र काठियावाड़ गुजरात के अलावा मुम्बई, सूरत तथा अहमदाबाद में भी बनने लगे हैं। प्रायः इन वस्त्रों में तथा डिज़ाइनों में लाल, पीले, हरे रंगों का प्रयोग तथा इनका मिश्रित रूप भी प्रयोग होता है।

बांधनी (Tie and Die) :
यह स्टाइल राजस्थान, गुजरात, काठियावाड़ आदि राज्यों का प्रसिद्ध व चहेता स्टाइल है। वस्त्रों में जैसा भी डिज़ाइन बनाना हो, वैसा ही उस पर बना कर उसमें दालें, चावल तथा अन्य दानों को बांधकर फिर उनको रंगा जाता है। ये वस्त्र तीन-तीन या कई बार 4 रंगों के भी होते हैं। ये भी सुहागनों के लिए मंगलमयी तथा सौभाग्य सूचक माने जाते हैं। ये रंग बिरंगे रंगों से वस्त्र उल्लास व तरुणाई के प्रतीक समझे जाते है। गुजरात व राजस्थान की बांधने वाली स्त्रियां बिना डिज़ाइन छापे ही डिज़ाइन को बांध कर बना लेती हैं। यह भी कई-कई रंगों में रंगा जाता है। पटोला और बांधनी में अन्तर यह है कि इसमें कपडे को बांध कर फिर रंगा जाता है। पटोला के अनुसार इसमें भी पहले हल्के रंग में रंगते हैं. फिर उससे गहरे में तथा फिर और गहरे रंग में रंगते हैं। बांधने का काम धागों से करते हैं। कई बार उन बंधे हए धागों पर मोम लगा देते हैं ताकि उस हिस्से पर गहरा रंग न चढ़ने पाए। इस बंधनी क्रिया में परम्परागत नमूने जैसे नर्तकी, पशु-पक्षी, फूल आदि तथा बेल-बूटे कई-कई रंगों में रंग कर बनाए जाते हैं। कुछ रंगने वालोंकी कार्यकुशलता ऐसी भी है कि एक ही वस्त्र के दोनों तरफ, दो प्रकार के नूमनों को रंग कर तैयार करते थे, जिसे देखकर कलाकार की कला की प्रशंसा किए बिना नहीं रहा जा सकता है।

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