Answer for भारत के प्रसिद्ध कौन से वस्त्र है ?

भारत के परम्परागत वस्त्रों में से अधिक प्रसिद्ध वस्त्रों का विवरण निम्नांकित है –
1. ढाका की मलमल : संसार में ढाका की मलमल आज भी प्रसिद्ध है। उस काल में लोगों ने तो उस मलमल को देखा व प्रयोग किया था किन्तु आज के समय के लोग उस मलमल की कल्पना करते हैं । कि मलमल का एक थान माचिस की डिब्बी में समाता था। जरा सोचिए उस काल के कारीगरों की कारीगरी। कैसे वह मलमल को बुनते होंगे। कहते हैं कि यह मलमल अनुकूल तापमान में ही बनाई जाती थी क्योंकि उसके धागे इतने बारीक होते थे कि गर्मी सर्दी में वे ऊष्मा से चटक जाते थे और केवल वर्षाकाल में ही इन्हें बुना जाता था जबकि नमी का वातावरण होता था। अंग्रेज लोगों का मानना था कि कोई भी मशीन इतना महीन कपड़ा नहीं बन सकती जितना कि वे बुनकर बुना करते थे।

2. ढाका की साड़ियां : यह साड़ियां बहुत कलात्मक होती थीं। उनकी सुन्दरता की नकल कोई नहीं कर पाता था। साड़ियों को जामदानी के नाम से जानते थे। इन साडियों की तिरछी कढ़ाई वाली साड़ी को “तेरछा” तथा फूलों के गुच्छों वाले नमूने की साड़ियों को “पन्ना हजारे”, फलवाली साड़ी को फलवार और बड़े बड़े फलों वाली को “तोरदार” कहते थे। इन साड़ियों की विशेषता पल्लू तथा बार्डर में ही होती थी। इसमें अनुपम प्रकृति के नमूने, बेल बूटे व पंछी भी बने होते थे।

3. चंदेरी साड़ियां : ग्वालियर के चंदेर प्रान्त में निर्मित यह सूक्ष्म, सुन्दर व अद्भुत साड़ियां बनती थीं तथा चंदेरी के नाम से आज तक प्रसिद्ध हैं। इन साड़ियों की विशेषताएं थीं कि सोने चांदी का काम इनमें सूती व रेशमी धागों के साथ होता था। कोई-कोई डिज़ाइन ऐसे भी होते थे कि दोनों तरफ 2 रंगों के होते थे। आजकल गर्मियों के मौसम में आभिजात्य वर्ग द्वारा चंदेरी की साड़ियां ही अपनायी जाती हैं। क्योंकि यह बहुत अधिक मंहगी होती हैं।

4. बालूचरी साड़ियां : यह साड़ियां भी मुर्शिदाबाद के समीप बालूचर प्रान्त में बनती थीं। इनका काम बहुत अधिक सुन्दर होता था। हर तरह के बेल बूटे, फूल सूंघती बेगम, रामायण, महाभारत के पात्र आदि बहुत तरह के डिज़ाइन इन साड़ियों की शोभा को दोगुना करते थे। आज के समय में भी बालूचर अपनी कला के लिए प्रसिद्ध है।

5. ब्रोकेड : जिन वस्त्रों में खनिज रेशों का प्रयोग कॉटन या सिल्क के रेशों के साथ किया जाता था वे ब्रोकेड कहलाते थे। इन वस्त्रों में प्राय: सिल्क या कॉटन का रेशा उल्टी ओर रहता था और सीधी ओर सिर्फ सोना या चांदी का रेशा ही दिखता था। उसकी चमक अद्वितीय होती थी।

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