कपड़ा कैसे बनता है
कपड़ा कैसे बनता है डॉल का कपड़ा कैसे बनता है सूती कपड़ा कैसे बनता है धागे से कपड़ा कैसे बनता है खादी का कपड़ा कैसे बनता है सिल्क कैसे बनता है भारत में सबसे ज्यादा कपड़ा कहां बनता है कपास से कपड़ा कैसे बनता है धागा कैसे बनता है
पौधों से कपास चुन कर सुखाते हैं। फिर उसमें से रुई व बिनौले अलग करते हैं। रुई को मशीनों की सहायता से कताई करके उसे धागों (Varn) का रूप देते हैं। अब धागा ब्लीच कर या बगैर ब्लीच करे ही काम में लिया जाता है। सादा कपड़ा बनाने की मशीनें तथा बुनाई में ही डिज़ाइन डालने की मशीनें अलग-अलग होती हैं। कपड़ा बुनाई के बाद फिर से ब्लीच किया जाता है तथा कलफ आदि लगा कर रोलर पर से गुजारते हैं जिससे कपड़ा प्रैस भी हो जाता है। अब थानों के रूप में कपड़ा मार्किट में आता है।
(I) अलसी – अलसी का बीज भी कपास की भांति बोकर इसी की भांति रेशा तैयार करते हैं। इसका रेशा जूता सिलने के काम में आता है। इसके अतिरिक्त मछली पकड़ने वाले जाल का धागा तथा फायर ब्रिगेड्स वालों की वर्दियाँ भी इसी धागे के मिश्रण से सिली जाती हैं क्योंकि यह धागा बहुत मजबूत होता है।
(II) कापोक – यह पौधा भी बीज से वृक्ष बनाकर ही प्राप्त करते हैं। यह रेशा वृक्ष के बीज के आसपास लिपटा रहता है। इसके रेशे बहुत चिकने व महीन होते हैं। किन्तु कताई ठीक से नहीं हो सकती है अतः प्रयोग कम ही होता है। इसके रेशों का रंग हल्का पीला होता है तथा गीला होने पर शीघ्र ही सूख जाता है। इनसे प्रायः सुरक्षा पेटियां व चटाई आदि ही बनती हैं।
(b) लिनन – यह पौधों के तने से प्राप्त किया जाने वाला रेशा है। यह पौधा 8 से 10 फीट ऊँचा होता है। इस पौधे के पकने पर जड़ से काट कर पानी में डाल देते हैं और जब ” पानी में इसकी छाल गल कर अलग हो जाती है तब तन्तु अलग-अलग हो जाते हैं। इस पर रासायनिक क्रिया द्वारा प्रक्रिया करके उत्तम प्रकार का तन्तु प्राप्त कर लिया जाता है। लिनन के वस्त्र, कपास की तुलना में मंहगे होते हैं क्योंकि इसमें श्रम अधिक लगता है।
(c) जूट – जूट का तन्तु भी तने से प्राप्त किया जाता है। यह पौधा 5 से 12 फुट तक ऊँचा होता है। यह गेहुँ व मक्की की फैन्सिंग (Fencing) यानि कि झाड़ी के रूप में अधिक प्रयुक्त होता है। इसे भी महीने, ढेढ़ महीने भिगोकर छाल को अलग कर लेते हैं और इससे रेशा प्राप्त होता है। यह रेशा लम्बा, चिकना, कोमल व हल्के पीले रंग के चमकदार होते हैं। जूट के तन्तु से रस्सी, बोरे, टाट बनते हैं तथा इसको कैन्वास व ऊनी कपड़ों में मिलाया जाता है तब दरी व गलीचे भी बनाए जाते हैं। वैसे तो यह पंजाब, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश में काफी मिलता है किन्तु बांगलादेश में इसका सर्वाधिक उत्पादन होता है। पानी के किनारे वाले स्थानों में इसका उत्पादन अधिक मात्रा में होता है।
(d) हेम्प – यह रेशा भी पौधों के तनों से ही प्राप्त होता है। इसके पौधे की लम्बाई 15 फीट होती है। इससे अच्छी गुणवत्ता वाला महीन जूट तन्तु प्राप्त किया जाता है। ऊनी कपड़ों में भी यह तन्तु मिक्स करते हैं। तब इससे गलीचे, रस्सियां तथा जूतों के तले बनाए जाते हैं। यह तन्तु कागज बनाने के काम में भी आता है। इसकी खेती महाराष्ट्र, कर्नाटक तथा चेन्नई में की जाती है। विदेशों में सोवियत संघ, यूगोस्लाविया, रोमानिया तथा हंगरी में भी इसकी खेती होती है। भारत में केरल में तो केले के पेड़ के तने से भी रेशे प्राप्त करके थैले, पर्स व पायदान आदि बनाकर लघु उद्योग चलाए जाते हैं।