योग और उसके घटक और योगिक आहार क्या है

DWQA QuestionsCategory: Questionsयोग और उसके घटक और योगिक आहार क्या है
itipapers Staff asked 3 years ago

योग और उसके घटक और योगिक आहार क्या है एक योगी का आहार कैसा होना चाहिए हठयोग के अनुसार आहार योगी का आहार क्या है योग क्या है परिभाषा पतंजलि के अनुसार योग की परिभाषा यौगिक आहार के लाभ योग का जनक कौन है योग का प्रमुख उद्देश्य क्या है

1 Answers
itipapers Staff answered 1 year ago

योग और उसके घटक और योगिक आहार क्या है
योगासन का अभ्यास प्रत्येक उम्र के स्त्री और पुरुष हर अवस्था में कर सकते हैं। योग आसनों से शरीर के सभी विकार दूर हो जाते हैं। काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार आदि का नाश हो जाता है। बुढ़ापा दूर हो जाता है। पाचन क्रिया सुन्दर बनती है। चंचल मन स्थिर बनता है और मानसिक शांति प्राप्त होती है। स्मरण शक्ति बढ़ती है। शरीर कुन्दन बन जाता है। अच्छी सेहत के लिए योग आसनों से बढ़कर दूसरा अन्य कोई विकल्प नहीं है। योग आसनों का नियमपूर्वक अभ्यास करने से खून की संचालन व्यवस्था. ठीक हो जाती है। शरीर चुस्तदुरुस्त रहता है। आलस तो नज़दीक भी नहीं आ पाता। अपना शरीर तंदुरुस्त, मुद्रा आकर्षक और उत्साहपूर्ण बनाए रखने के लिए आपको किसी खास तरह की तपस्या या आराधना, उपासना करने की ज़रूरत नहीं। इसके लिए योग आसन कर लेना ही काफी है।

योगासन की उपयोगिता
योगासन अर्थात् आसन का अर्थ है स्थिति। जिस सुविधाजनक स्थिति में बैठकर योग का अभ्यास आसानी से हो सके उसमें बैठकर अभ्यास करना ही अच्छा है। इसलिए योग के आचार्यों ने अनेक प्रकार के आसनों की कल्पना की जिनमें से अपने शरीर की स्थिति के अनुकूल प्रतीत होने वाले किसी भी आसन का प्रयोग किया जा सकता है। योग मार्ग के प्रवर्तक श्री आदिनाथ शिव ने सृष्टि की चौरासी लाख योनियों के आकार को आसन के उपयुक्त पाया और उतनी ही बड़ी संख्या में से अपने अनुकूल सिद्ध होने वाले आसन को छांट लेना कोई सरल कार्य नहीं था। बड़े-बड़े अनुभवी ऋषि-मुनी भी उन सारे आसनों के अभ्यास के लिए सफल नहीं हो सकते थे। इसलिए उन्होंने सबकी पड़ताल करके चुनाव किया और उनमें से जितने आसन व्यवहार में आने के योग्य समझे, उतने छांटकर निश्चित कर दिये। इस प्रकार उस बहुत बड़ी संख्या में से काट-छांट होते-होते आसनों की कम संख्या व्यवहारिक सिद्ध हुई। चौरासी लाख से कम होकर चौरासी हज़ार और फिर उससे भी कम होकर चौरासी सौ रह गई। उसके बाद भी जो काट-छांट की गई तो आठ सौ चालीस आसनों की उपयोगिता मानने योग्य रह गई। उसके बाद जो आचार्य हुए उन्होंने अपने अनुभव के आधार पर चौरासी आसनों को ही उचित माना है। उनके मत को मानने वालों ने तो उस संख्या को भी अधिक उपयोगी न समझकर सिर्फ बत्तीस (32) आसनों को व्यवहारिक माना। उसके बाद आने वाले आचार्यों ने तो बत्तीस आसनों को भी फिजूल समझा और योग अभ्यास करने वालों की दिशा उस समय के मुताबिक शारीरिक स्थिति को देखते हुए योग आसनों की संख्या बहुत कम निर्धारित कर दी। ‘हठयोग प्रदीपिका’ में 14 तरह के, योग प्रदीप (संवत् 1825 के लेख) में 29 प्रकार के, घरिंड संहिता में 32 प्रकार के, विश्व कोष में 32 तरह के, अनुभव प्रकाश (संवत् 1825) में 50 प्रकार के आसनों का वर्णन मिलता है। इनके अलावा ‘आसन’ नाम की पुस्तक में 89 तरह के आसन और हैं जो आधुनिक समय के अनुकूल हैं। इस प्रकार आसनों की पूर्ण संख्या 133 हुई। परन्तु योगी गोरखनाथ और योगी कोक ने योग और भोग के आसनों की पूरी संख्या 84 निश्चित की। पूर्व काल में भगवान सदाशिव ने 84 लाख आसन बताये थे जो कि संपूर्ण प्राणियों के स्वरूप थे, परन्तु काल चक्र के कारणों से लोप हो कर 84 ही रह गये। फिर भी हम यहां अनेक ऐसे आसनों का वर्णन करेंगे जो कि अभ्यास करने में सरल और अधिक उपयोगी सिद्ध हो सकें। आसन ऐसा होना चाहिए जिसमें लगातार बैठने में किसी प्रकार की तकलीफ का अनुभव न हो बल्कि मम में प्रसन्नता बनी रहे और कम से कम एक पहर तक लगातार बैठे रहने से किसी तरह का ऊबाऊपन न महसूस न हो। इस बात को सामने रखते हुए अपने लिए किसी उपयोगी आसन का चुनाव करना चाहिए। . योग आसनों के नियमबद्ध अभ्यास से योग साधकों को ही नहीं, गृहस्थियों और भोगी औरतों-मों को भी | स्वस्थ और सुन्दर रहने में ये सहायक सिद्ध होते हैं। इनके द्वारा शरीर की मांसपेशियां मज़बूत होकर उनमें लचक ‘ आ जाती है। यह देखकर योग के आचार्यों ने आसन के अभ्यास से साधक का कामदेव के समान सुन्दर हो ज़ाना बताया है। परन्तु किसी भी आसन का अभ्यास करने से पहले शरीर को मल-रहित और साफ बना लेना चाहिए।ऐसा न करने से शरीर में आलस बने रहने से तत्परता नहीं होती जिससे साधना में मन ठीक तरह नहीं लगता। रोज़ सुबह उठकर शौच आदि जा कर और स्नान करना भी साधक के लिए बहुत हितकारी है। इसके बाद आसन की स्थिति करनी चाहिए। योगासन से पहले कोपीन या लंगोट धारण करना अधिक उपयोगी है। जांघियां पहनने से भी काम चल सकता है। ज़रूरत हो तो बनियान भी पहनी जा सकती है। सर्दियां होने से शरीर की सुरक्षा के लिए कोई ढीला कपड़ा भी धारण किया जा सकता है। स्त्रियों के लिए भी अंडरवियर (जांघिया) या पजामा पहनना ठीक है। शरीर पर चोली, ब्लाऊज़ या छोटी कमीज़ धारण कर सकती हैं, परन्तु यह ध्यान रहे कि योग आसन करने वाली औरत हो या मर्द हो, दोनों को ही कम कपड़े पहनने चाहिएं। ___ आसन का अभ्यास करने की जगह भी साफ, सुन्दर, समतल, अलग, धूल व धुएं से रहित होनी चाहिए और जहां शुद्ध हवा का आसान आवागमन हो तथा नज़दीक पानी की सुविधा भी हो। बैठने से पहले कोई मोटा कपड़ा या कम्बल या दरी बिछाकर जगह समतल कर लें। ऐसी सुविधा होने से अभ्यास में भी ज्यादा आसानी रहती है। किसी रोग में जब शरीर पर काबू न हो, तो कोई भी आसन न करें। जितनी सुबह हो सके आसन कर लेने चाहिएं। पेट को साफ़ रखने वाले आसनों से आसन शुरू करने चाहिएं। सुविधाजनक आसन पहले करें। जो आसन हल्के और आसान मालूम हों, उनको करो। सारे आसन करने के बाद ‘शव-आसन’ करना चाहिए। यह आराम का आसन है, जिसमें सारे शरीर को ढीला छोड़ दिया जाता है। 20 या इससे कम उम्र वाले लड़केलड़कियों को नाभि-आसन से शुरुआत करना अच्छा होता है। इससे खून के बढ़ने में सहायता मिलती है। उत्तम सेहत के लिए योग आसनों से बढ़कर दूसरा कोई विकल्प नहीं है।

Back to top button