लाइनेक्स ऑपरेटिंग सिस्टम किसे कहते है
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जैसा कि आप जानते हैं कि लाइनेक्स एक ऑपरेटिंग सिस्टम का नाम है। यह वर्तमान समय में इंटरनेट पर अनेक संस्करणों में मुफ्त में उपलब्ध हैं। इसे आप प्रत्येक उस कम्प्यूटर सिस्टम पर इंस्टॉल कर सकते हैं जिस पर विंडोज़ को प्रयोग किया जा सकता है। जिस समय कम्प्यूटर के शुरूआती दिन थी उस समय यूनिक्स (UNIX) को ऑपरेटिंग सिस्टम के तौर पर प्रयोग किया जाता था। आज भी बड़ी-बड़ी संस्थायें यूनिक्स को ही ऑपरेटिंग सिस्टम के तौर पर प्राथमिकता देती हैं। यह नेटवर्किंग के लिये सबसे शक्तिशाली ऑपरेटिंग सिस्टम माना जाता है। यूनिक्स का निर्माण AT&T नामक कम्पनी ने किया था और यह आम जनता के प्रयोग के लिये मुफ्त में उपलब्ध नहीं है। कम्प्यूटर वैज्ञानिकों ने इंटरनेट और नेटवर्किंग का बढ़ता चलन देखकर यूनिक्स पर आधारित एक ऐसा ऑपरेटिंग सिस्टम बनाया शुरू किया जोकि प्रत्येक यूजर को मुफ्त में उपलब्ध हो सके। इस कार्य में इंटरनेट के जरिये दुनियाभर के कम्प्यूटर डेवलपर एकजुट हुए और उन्होंने लाइनेक्स नामक ऑपरेटिंग सिस्टम का निर्माण कर डाला। वर्तमान समय में अनेक यूजर ग्रुप इंटरनेट पर लाइनेक्स के विकास में लगे हुए हैं और अपने ग्रूपों के नाम के अनुसार इसके नये नये संस्करण इंटरनेट पर डालते रहते हैं। आप इसे इंटरनेट से डाउनलोड करके अपने सिस्टम में इंस्टॉल कर सकते हैं। कम्प्यूटिंग की दुनिया में इसे ओपन सोर्स सॉफ्टवेयर के नाम से भी जाना जाता है। इसे हिंदी में मक्त स्रोत सॉफ्टवेयर कहा जाता है। अपनी तरह का यह सबसे कामयाब और लोकप्रिय ऑपरेटिंग सिस्टम है। आज IBM जैसी नामीगिरामी कम्पनियां अपने सिस्टमों में चाहे वह डेस्कटॉप हो या लैपटॉप इसे प्रि-इंस्टॉल करके देती हैं।लाइनेक्स का निर्माण यनिक्स पर ही आधारित है इसलिये यह यूनिक्स जितना ही पॉवरफुल है।
⇨ यदि लाइनेक्स और यूनिक्स की तुलना करें तो, यूनिक्स प्रयोग में जटिल और चलाते में मुश्किल है। इसी वजह से एंडी टेनेबाम नामक एक जर्मन कम्प्यूटर वैज्ञानिक और एम्सटरडम में प्रोफेसर ने मिनिक्स नामक एक प्रोग्राम लिखा।
⇨ कुछ समय बाद में फिनलैंड, हेलसिंकी के एक कम्प्यूटर विज्ञान के छात्र लिनस टोरवाल्ड ने इस प्रोग्राम में सुधार किये और इसका नाम लिनस का यूनिक्स पड़ गया। कालान्तर यही नाम बदलकर लाइनेयस कहलाया।
⇨ इस प्रोग्राम का करनेल उन्होंने सन 1991 में इंटरनेट पर पोस्ट किया। बाद में इसमें और प्रोग्राम जुड़ते चले गये तथा लाइनेक्स एक ऑपरेटिंग सिस्टम के रूप में शक्तिशाली होता चला गया।
⇨ इसके विकास में रिचर्ड स्टालमेन के GNU प्रोजेक्ट का बड़ा हाथ रहा है। इसीलिये इसे GNU-LINUX भी कहते हैं।
⇨ लाइनेक्स ऑपरेटिंग सिस्टम पर किसी का कोई स्वामित्व नहीं है और न ही कोई कम्पनी इसकी मालिक है। इसके विकास में दुनियाभर के प्रोग्रामर अपना योगदान देते हैं। यह अपनी तरह का अनूठा प्रोजेक्ट है या यह कहिये कि आंदोलन है।
⇨ आज कई कम्पनियां लाइनेक्स के प्रयोग और इम्प्लीमेंटेशन में अपना योगदान देकर पैसे भी कमा रही हैं। लेकिन यह पैसे दी गयी सर्विस के एवज में लिये जाते है न कि लाइनेक्स को बेचकर ऐसी कम्पनियों में रेड हैट, सूसे नौवल और डेबियन प्रमुख हैं।