सब-सेलर Sub-sailer क्या होता है ?

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itipapers Staff asked 1 year ago

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1 Answers
itipapers Staff answered 1 year ago

यह ट्रैक्टर पर थ्री प्वॉइण्ट प्रणाली पर कार्य करता है। कुछ कम्पनियों के द्वारा यह बिना डिस्क के भी बनाया जाता है। इसके आगे एक गोल, धार वाली डिस्क (सीधी) लगी होती है, जो जमीन को गहराई तक चीर देती है। इस डिस्क के पीछे एक खरपा लगा होता है, जो चीरी गयी जमीन में घुस कर मिट्टी को पलट देता है। ऐसा दो-तीन बार किया जाता है, जिससे खरपतवार जमीन के नीचे दब जाती है इसके उपरान्त पानी से सिंचाई . कर देते हैं। इस प्रकार खरपतवार भी खाद का कार्य करती है। यह सात खुरपों तक का होता है।

सेकेण्डरी टिलेज टूल Secondary Tillage Tool
प्राइमरी टिलेज टूल द्वारा खेत की मिट्टी को पलट दिया जाता है, सेकेण्डरी टिलेज इस मिट्टी को महीन करके खेत बिजाई के लिए तैयार करने में सहायक होते हैं। इसके साथ इनसे खेत में कम समय में न गलने वाले खरपतवार को भी बाहर निकाला जा सकता है।

टिलर Tiller
इसे कल्टीवेटर भी कहते हैं। इसका प्रयोग खेती में जुताई के लिए सबसे अधिक किया जाता है। इसके द्वारा जुताई में बहुत शीघ्रता आ जाती है व जुताई काफी गहरी होती है, परन्तु इनको समतल खेतों में ही सफलतापूर्वक प्रयोग किया जा सकता है, क्योंकि ऊँची-नीची जगहों पर इसके हल (फाल-टाइन) भूमि में धस जाते हैं। टिलर दो प्रकार के होते हैं
1. ट्रेल्ड टिलर (Trailed Tiller)
2. माउण्टेड टिलर (Mounted Tiller)

टेल्ड टिलर Trailed Tiller
यह बैलों और घोड़ों से खींचकर प्रयोग किया जाता है। इसमें 4 से 6 तक संख्या में टाइन लगे होते हैं। समतल भूमि पर अथवा सड़क पर एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने के लिए दोनों साइडों में लोहे के पहिए प्रयोग किये जाते हैं।

माउण्टेड टिलर Mounted Tiller
डिस्क प्लाउ के द्वारा खेत की मिट्टी पलटने का ही कार्य होता है। इससे मिट्टी के बड़े-बड़े ढेले बन जाते हैं। इन ढेलों को महीन करने के लिए इस टिलर का प्रयोग किया जाता है। इसके अतिरिक्त खेत को लगभग समतल भी किया जा सकता है। इसमें 7 से 11 की संख्या में खुरपे (टाइन) प्रयोग किये जाते हैं। इन टाइनों को दो लम्बी एंगिल आयरनों के बीच स्प्रिंगों की सहायता से फिट किया जाता है। स्प्रिंगों के कारण ही यह उछल कर अपने को टूटने से बचाता है। यह भूमि में 18 इंच तक घुस जाता है, जिससे गहरी जाने वाली जड़ों को भी निकालना सम्भव होता है। यह टिलर मोटे खरपतवार को अपने साथ बाहर भी ले आता है। चित्र में बना स्प्रिंग वाला रिजिड टिलर भी दिखाया गया है। इसके लिए खेत को बहुत बारीक तैयार करना पड़ता था। यह डिबलर की लकड़ी का बना होता था। लकड़ी की 4 से 6 इंच की दूरी वाले फ्रेम में 2 इंच से 3 इंच तक दूरी पर नीचे की ओर 2 इंच लम्बी छूटी लगायी जाती थी। इस डिबलर को चौकोर या आयताकार ” x 2″ या 2″ x 2- फुट का फ्रेम बनाकर खेत में घुमाते थे, जिससे खेत में खूटी का निशान बन जाता था। इन निशानों पर गेहूँ, मक्का का बीज डाल देते थे, इसके बाद उस पाटा (प्लेनर) को चलाकर ढक देते थे। इस क्रिया में खेत में नमी की आवश्यकता होती थी। इस प्रकार से बोये जाने पर काफी समय और खर्च अधिक होता था, अनुसन्धान केन्द्रों में अब भी इसी क्रिया का प्रयोग होता है, समय और लागत की बचत के लिए सीड ड्रिल का आविष्कार किया गया।

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