Finishes and their Aims क्या होता है

DWQA QuestionsCategory: QuestionsFinishes and their Aims क्या होता है
itipapers Staff asked 2 years ago

Finishes and their Aims क्या होता है  Types of finishes in textiles Types of chemical finishes in textiles Finishing meaning in Hindi What is textile finishing Types of finishing Types of fabric finishes PDF Fabric finishing process PDF Textile finishing process

1 Answers
itipapers Staff answered 1 year ago

मिलों में वस्त्र बन कर तैयार होता है। उसके बाद उसकी सजावट हेतु बहुत से क्रियाकलापों का सहारा लेना पड़ता है ताकि वह वस्त्र हर प्रकार से प्रयोग करने में तथा देखने में, खरीदने में सभी क्रियाओं में ही अच्छा लगे। क्योंकि केवल बुना हुआ या निटिड वस्त्र परिसज्जा की क्रियाओं के बिना उतना सुन्दर नहीं लगता है जितना कि मार्किट में आए हुए थानों को देखना अच्छा लगता है। अतः वीविंग या निटिंग करने के उपरान्त वस्त्रों की परिष्कृति अर्थात सफाई एवं परिसज्जा अर्थात सजावट करने के कारणों का उल्लेख यहां किया जाएगा।

1. मिलों में तैयार वस्त्र को ग्रे-गुड्स (Grey goods) के नाम से पुकारा जाता है। यह वस्त्र देखने में भद्दा दिखाई देता है, कहीं-कहीं दाग धब्बे भी लगे हुए होते हैं। न ही किसी प्रकार की चमक होती है न ही प्रैसिंग होती है। अत: उन सब कमियों को दूर करने के लिए ही हमें परिष्कृति एवं परिसज्जा करने की ज़रूरत होती है।

2. वस्त्र के बाह्य रूप को सुन्दर बनाना (To increase the beauty of cloth) : जो बुनाई के समय वस्त्रों पर दाग-धब्बे लग जाते हैं उनको छुड़ाने की प्रक्रिया आवश्यक होती है। रेशों की क्वालिटी के अनुसार उनको धोना, ब्लीच करना, उनकी धागों में आई हुई गाठे हटाना या फालतू धागों की कटिंग करना। ये सब क्रियाएं जिसके लिए जो आवश्यक हैं वह की जाती हैं।

3. वस्त्र को प्रयोजन अनुसार बनाना तथा उसको उपयोगी बनाना (To increase the suitability and utility): वस्त्र बुनने के तुरंत बाद उसकी उपयोगिता नहीं दिखती है, वह भद्दा, बैडोल दिखाई देता है और एक वस्त्र कई प्रकार के प्रयोजनों हेतु बनते हैं। वस्त्र को अभीष्ट प्रयोजन हेतु बनाना मिल वालों का ही काम होता है। जैसे फरनिशिंग के लिए, अपहोल्सटरी तथा परिधान के लिए, वैसी ही फिनिशिंग देने पर ही वे ग्राहक को आकर्षित करते हैं और उस परिसज्जा में उद्देश्य के अनुसार क्रियाएं की जाती हैं। जैसे टैण्टरिंग, मर्सिराइजिंग, सेन्फराइजिंग आदि की क्रियाएं करना – अर्थात जिस वस्त्र को जिस परिसज्जा की ज़रूरत हो वह उपचार मिलों वाले इंजीनियर अपनी देखरेख में कराते हैं। इससे वस्त्र में कड़ापन, चमक, चिकनापन आ जाता है। कई बार ऐसी परिसज्जा भी होती है जिन पर कीटनाशक लगाने से वात्र में कीड़े लगने का डर नहीं रहता है।

4. वस्त्र को कड़ा करना तथा उसके वजन में वृद्धि करना
(To increase the stiffness and weight of the cloth): कोई भी लिजलिज़ा वस्त्र लेना नहीं चाहता क्योंकि उसकी पोशाक ढीली ढाली बनेगी जो किसी को क्या स्वयं को भी अच्छी नहीं लगेगी। ऐसे ढीले वस्त्रों को परिसज्जा द्वारा यानि मांड, गोंद आदि लगा कर कड़ा (stiff) बनाया जाता है तथा कुछ वस्त्रों पर मोम, ग्लीसरीन तथा पैराफिन की परिसज्जा द्वारा वस्त्रों को चिकना मुलायम बनाया जाता है। इसके अतिरिक्त रेशम जैसे हल्के रेशों के वस्त्र का वजन बढ़ाने के लिए चायना क्ले, मांड, मुल्तानी मिट्टी तथा धात्विक लवणों का प्रयोग किया जाता है।

5. अनुकृत वस्त्र बनाने हेतु (To produce imitation): वस्त्र के जो रेशे हैं उनको परिसज्जा द्वारा उनके बाह्य रूप को बदल कर किसी मिलते-जुलते वस्त्र के समान बनाया जाता है। जैसे सूती वस्त्र पर रोएं उठाकर गर्म वस्त्र के समान बना देते हैं और सूती वस्त्र को रेशमी वस्त्र के समान करने के लिए उस पर मरसिराइज़ की परिसज्जा दी जाती है।

6. विविधता हेतु (To produce variety): आजकल जनता में वैराइटी अर्थात विविधता का ज्यादा जोर है। एक ही वस्त्र को अलग-अलग प्रकार से परिसज्जाएं देने से एक में ही अनेक प्रकार मार्केट में देखने को मिलते हैं। अनेकों रंग द्वारा, अनेकों नमूनों द्वारा, कहीं-कहीं रोएं उठाकर फर बनाना या किसी सतह को चमकदार बना कर या गांठे दे कर आदि तरह की परिसज्जाओं द्वारा एक ही क्वालिटी में हजारों क्वालिटी बना देते हैं ताकि प्रत्येक ग्राहक, उपभोक्ता अपनी इच्छानुसार वस्त्र को खरीद सके।

Back to top button